इतिहास और राजनीति >> उत्तर प्रदेश में असहयोग आन्दोलन उत्तर प्रदेश में असहयोग आन्दोलनडॉ. प्रीति त्रिवेदी
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स्वतंत्रता संग्राम का माइक्रो अध्ययन : काबाल टाउन्स के सन्दर्भ मेें
आत्मकथ्य
प्रस्तुत पुस्तक इतिहास के माइक्रो अध्ययन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका स्वरूप भी परम्परागत भारी भरकम पुस्तकों से भिन्न एक लघु पुस्तक का है। यह पुस्तक एक सामान्य छात्र के साथ ही साथ प्रतियोगी परीक्षार्थियों हेतु भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि ब्रिटिश कालीन भारत के संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की अपनी एक विशिष्ट पहचान रही है। काबाल टाउन्स (कानपुर, आगरा, बनारस, इलाहबाद तथा लखनऊ) में राष्ट्रवादी आन्दोलन के विस्तार तथा प्रभाव के विशिष्ट आयाम रहे थे ।
1885 में जन्मी कांग्रेस लगभग 35 वर्षों तक समाज के कुछ विशिष्ट वर्गों तक ही सीमित रही। बंगभंग के पश्चात हुए स्वदेशी आन्दोलन ने राष्ट्रवादी भावना को जन सामान्य के मध्य पहुँचाया अवश्य था किंतु एक राजनैतिक दल के रूप में कांग्रेस 'भारतीय जनता की कांग्रेस' असहयोग आन्दोलन से ही बनी थी।
इसी प्रकार संयुक्त प्रान्त में भी राष्ट्रवादी भावना का प्रचार एवं विस्तार बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही हो रहा था किंतु राष्ट्रवादी एवं राजनैतिक घटनाओ का केंद्र संयुक्त प्रान्त बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक से ही बना था।
खिलाफत आन्दोलन ने भारत में मुसलमानों को राष्ट्रीय आन्दोलन की मुख्य धारा से जोड़ दिया था। रॉलट एक्ट तथा 1919 के सुधारों से भारतीय पूर्णतया असंतुष्ट थे ही। अगस्त 1920 को असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ की घोषणा हो गई। यह प्रथम और संभवत: एकमात्र ऐसा आन्दोलन था जिसमें कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने एक साथ मिलकर दो स्तरों पर आन्दोलन चलाया - प्रथम रचनात्मक तथा द्वितीय विध्वंसात्मक।
रचनात्मक आन्दोलन के अंतर्गत स्वदेशी को प्रोत्साहन, तिलक कोष में धन संचय, स्वयंसेवकों के दल का संगठन, चरखा, राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई।
विध्वंसात्मक कार्यों में उपाधियों एवं सरकारी पदों का त्याग, करों का या बहिष्कार सरकारी उत्सवों, दरबारों का बहिष्कार, सरकारी एवं स्थानीय संस्थाओं से त्यागपत्र।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, चुनावों का बहिष्कार, विदेशी शिक्षण संस्थानों का त्याग, अदालतों का बहिष्कार सम्मिलित थे।
संयुक्त प्रान्त के पाँच महत्वपूर्ण स्थान - कानपुर, इलाहाबाद (आधुनिक प्रयाग), आगरा, बनारस (वाराणसी) एवं लखनऊ में असहयोग आन्दोलन के विकास एवं विस्तार की विवेचना राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन को एक नवीन आयाम प्रदान करेगी। असहयोग आन्दोलन के मध्य ही कुछ नवीन विचारधाराओं एवं ऐसे नेताओं का विकास भी हुआ जिन्होंने भविष्य की राजनीति को प्रभावित किया।
विषय से संबद्ध जो पठनीय सामग्री इस पुस्तक में दी गई है व पूर्णरूप से स्तरीय है तथा विषय का समुचित ज्ञान भी प्रदान करेगी। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास एवं विस्तार को इस पुस्तक से एक नवीन आयाम प्राप्त होगा। संपूर्ण एवं सारगर्भित सामग्री को विषय तथा पाठकों के हित में प्रस्तुत किया गया है।
जिन लेखकों की मौलिक रचनाओं का उपयोग इस पुस्तक को तैयार करने में किया गया है उनके प्रति मैं आभारी हूँ। मैं अपने छात्र एवं सहायक श्री परमानंद मिश्रा जी का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने अपने परिश्रम से पुस्तक की पूर्णता में महान भूमिका निभाई है।
साथ ही मैं अपने माता पिता, परिवार, मित्र एवं सभी शुभेच्छुओं के प्रति ह्रदय से आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा मेरा अमूल्य धन है।
- प्रीति त्रिवेदी
मई 2024, कानपुर।
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